संसद का पाँच दिन का विशेष सत्र सोमवार से शुरू हुआ. संसद की पुरानी इमारत में शुरू हुआ यह सत्र संसद की नई इमारत में ख़त्म होगा..
सोमवार शाम केंद्रीय कैबिनेट की बैठक भी हुई. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ मोदी कैबिनेट ने महिला आरक्षण बिल को मंज़ूरी दे दी है. यह बिल पिछले 27 साल से लटका हुआ है.
जिसका कारण मुख्य रूप से यह है की महिला आरक्षण के नाम पर इसका सारा फायदा केवल सवर्ण और अमीर घर की महिलाओं को ही सारा फायदा होगा जबकि गरीब पिछड़ी महिलाओं को इसका जरा भी फायदा नहीं होगा जिनकी महिलाओं में 95 % महिलाए आती है
ये बात समझ लेनी चाहिए की एस सी एस टी जिनकी संख्या लगभग तेईस प्रतिशत पिछड़ी जातियां जिनकी संख्या बावन प्रतिशत है लेकिन इनकी भागीदारी दो प्रतिशत नहीं है इनकी संख्या शिक्षा में नौकरी में राजनीती में कही भी उंगलियो पर गिनी जा सकती है जबकि नौकरी , राजनीती शिक्षा में अपर कास्ट की महिलाए सबसे आगे रहती है अब अगर महिला आरक्षण अपने मौजूदा रूप में पास हो जाता है तो दस प्रतिशत सवर्ण के लिए आरक्षण पहले से है बावजूद सभी अस्सी प्रतिशत संस्थानों में नौकरियो में राजनीती में हर जगह सवर्ण है इसके बाद पचास प्रतिशत महिला आरक्षण से ये ही अपर कास्ट की महिलाए ही आगे आयंगी और जिन महिलाओं को इसकी जरूरत है मूह देखती रह जाएंगी जैसा की सदीओ से होता आ रहा है
महिला विकास उनके उत्थान पर सबसे पहले आजाद भारत में डॉ आंबेडकर ने भारतीय नारी को पुरुषों के मुकाबले बराबरी के अधिकार दिए था । भारतीय समाज में लैंगिक असमानता को खत्म करने के लिए उन्होंने बाकायदा संविधान में लिंग के आधार पर भेदभाव करने की मनाही का इंतजाम किया।
आर्टिकल 14 से 16 में महिलाओं को समाज में समान अधिकार देने का भी प्रावधान किया गया है। इसके अलावा इनको पिता की सम्पति में सामान अधिकार ,नौकरी करने वाली महिलाओं को मत्रिनिटी बेनिफिट जिसमे छ महीने तक की पेढ लीव का प्रावधान रखा लेकिन इनका विरोध किया गया
लेकिन इतने सालो तक जो काम डॉ. आंबेडकर १९५६ में करना चाहते थे अब जाकर २००४ में जाकर प्राप्त हुआ
महिला आरक्षण का समर्थन सभी अपर कास्ट की महिलाए कर रही है मीडिया में भी ऐसा ही दिखाया जा रहा है लेकिन जो दबी हुई महिलाएं है उनकी आवाज को दबाया ही जा रहा है