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सविंधान के बाहर विशेष प्रवाधान : आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण EWS Reservation Review Petition

सविंधान के बाहर    विशेष प्रवाधान : आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण EWS Reservation Review Petition

9 जनवरी, 2019 को संसद द्वारा 103वां संविधान संशोधन अधिनियम 2019 पारित किया गया। यह अधिनियम आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से संबंधित व्यक्तियों को 10% आरक्षण का प्रावधान करता जिसका  देश के लगभग सभी वर्गों ने प्रचंड विरोध किया और इस आरक्षण को सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई  लेकिन अंतत  सुप्रीम कोर्ट ने इस आरक्षण पर मोहर लगा दी  , लेकिन समाज के प्रबुद्ध वर्गो ने  इस आरक्षण पर पुनर्विचार याचिका दुबारा से सुप्रीम कोर्ट में  डाल दी है  और इसके लिए  विशेष तर्क यह दिया गया है कि सवर्ण आरक्षण  समाज की अपर कास्ट के लिए एक जातिवादी  विशेष  प्रवाधान है जो सविंधान की मूल भावना के  खिलाफ है  लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने पिछले फैसले में कहा  था की यह सविंधान के सामानता के मौलिक अधिकार  को खत्म नहीं करता है  जबकि इस आरक्षण के विशेष प्रवाधान खुद इस फैसले के खिलाफ  बोलते है ,  जैसे जिनकी सालाना आय आठ लाख रूपये से कम होगी उन लोगो को आरक्षण मिलेगा  जबकि इसी आय पर एस सी एस टी क्रीमी लेयर में आ जाता है , देश में आयकर का कानून अनुसार साल की ढाई लाख आय पर इनकम टैक्स लग जाता है तो जो आठ लाख पर गरीब है वो आयकर कैसे देगा ?? यही सवाल अभी मुदुराई में हाई कोर्ट बेंच ने सरकार से पूछा है ?? तो क्या अब सवर्णों के लिए टैक्स  इत्यादि के भी नए कानून बनाएगा ??

चलिए  इसके थोडा पीछे चलते है

भारत में आरक्षण

अंग्रेजी सरकार के इस फैसले का सबसे ज्यादा विरोध  तथाकथित हिंदूवादी संघठन यानी अपर कास्ट ने किया जिसकी अगुवाई मोहन दास करम चंद गांधी ने किया  यहाँ तक कि गांधी भूख हड़ताल पर बैठ गया और  डर आंबेडकर पर  तरह तरह से दबाव बनाए जाने लगे ,  उनके खिलाफ हिंसक और उग्र पदर्शन हुए . और डर. आंबेडकर को प्रथक निर्वाचन   फैसला बदलना  पड़ा लेकिन इसके बदले गाँधी और आंबेडकर के बीच  १९४२ में फैसला हुआ जिसे पूना पैक्ट के नाम से जाना जाता है  और इस फैसले के  अनुसार  यदि एस सी एस टी प्रथक निर्वाचन छोड़ते है तो इनको शिक्षा , नौकरी , राजनीती , सांसद और  हर जगह आरक्षण के जरिये प्रतिनिधित्व दिया जाएगा .

तो इससे दो बाते साफ़ हो गई की सबसे पहले आरक्षण कोई सरकार का कार्यक्रम नहीं बल्कि पूना पैक्ट का वादा है जिससे भारत सरकार फिर नहीं सकती . दूसरा यह कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है बल्कि शासन , प्रशासन में प्रतिनिध्तिव है  

इस आरक्षण का विरोध शुरू से ही हाता आया है और उसके लिए दिए जाने वाले तर्क बेहद फूहड़ रहे है और सबसे बड़ा तर्क था एस सी एस टी आरक्षण समानता के अधिकार का हनन करता है 

अब जब समय बदल रहा है और इसमें कोई शक नहीं समाज के सभी  वर्गों में वंचित लोग है और उनकी  अनदेखी नहीं की जा सकती , लेकिन यहाँ सबसे बड़ी समस्या यह है की सरकार अपनी राजनीति चलाये रखना चाहती है और इन्हें देश से कोई मतलब नहीं

लेकिन एक ऐसी योजना नहीं बनाना  चाहती कि जिससे हर वर्ग का  भला हो , जैसे यह मांग कब से उठ रही है की देश में जातिगत जनगणना कराई जाए ताकि समाज के हर वर्ग का ठीक ठीक पता चल सके कि किस जाति में कितने लोग आगे बढ़ गए है  लेकिन सरकार यह एक इमानदार कदम नहीं उठाना  चाहती  जबकि अगर यह कार्य सरकार करे  तो बहुत समस्याए सुलझ सकती है

अगर आप ये प्रवाधान देखंगे तो आपको हंसी जरूर आएगी

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए मानदंड

और देश में  पचास हजार कमाने वाला गरीब नहीं होता , चौदह रूपये रोज कमाने वाला  गरीबी रेखा के निचे नहीं होता

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