आम लोगो की जेब काट रही है डिजिटल पेमेंट कम्पनियां

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 टाउन हॉल टाइम्स : आप देखंगे सब्जी मार्किट से लेकर  पंसारी की दूकान हो आइसक्रीम दूकान हो या गोलगप्पे की दूकान हर जगह चिल्लर की दिक्कत की वजह से आज हर कोई दुकानदार और  ग्राहक  दोनों डिजिटल पेमेंट पर निर्भर हो गए है या एक सरकारी षड्यंत्र के जरिये बाजार से  खुल्ले पैसे गायब कर दिए गए है ताकि आप इन डिजिटल पेमेंट सिस्टम पर निर्भर हो जाए और फिर धीरे धीरे  इस डिजिटल पेमेंट के नाम पर आपकी जेब काटने लग जाए . जी हाँ ये ही हुआ है पूंजीपतियो का फायदा करने के लिए देश में डिजिटल पेमेंट सिस्टम को लाया गया जिसमे सबसे पहले सरकार ने छोटे अनुपात के पैसे और रूपये मार्किट से गायब कर दिए  ताकि आप इस सिस्टम  को अपनाने लगे  और ये डिजिटल पेमेंट की कंपनिया हर साल आपकी जेब काट काट कर हजारो करोड़ हर साल कमा रही है  जाहिर सी बात है इस कमाई का नजराना और शुकराना सरकारी नेताओं की जेब में  परोक्ष  रूप से जाता ही होगा चाहे वो चुनावी बांड हो या नेताओं के खर्चे और विज्ञापन .

भारत की अर्थ्वाव्य्स्था में रिटेल व्यापार यानी लेन देन हर महीने अडतालीस लाख करोड़ का है यानी एशिया और अफ्रीका के कई देशो का सालाना बजट जितना होता है उतना यहाँ पर हर महीने लेन देन  लोकल दुकानों पर यानी सब्जी, आटा ,मिठाई , ट्रेन का टिकट , मूवी का टिकट , आदि आदि

भारत में डिजिटल भुगतान क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों में भारी उछाल देखा गया है, जो 30% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (सीएजीआर) से बढ़ रहा है। वित्त वर्ष 2021-22 में डिजिटल भुगतान लेनदेन की मात्रा 7,197 करोड़ थी, जबकि इन लेनदेन का कुल मूल्य 1,744 लाख करोड़ रुपये था।  जिसकी सराहना  कई बार मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय  मंचो पर की |

 आखिर  दुनिया में मोदी जी ये सब क्यों बता रहे  है भारत में इतना डिजिटल लेन देन हो रहा है   ?  वजह वही हर महीने का अडतालीस लाख करोड़ जिस पर नज़र दुनिया के पूंजीपतियो की है ताकि वो आकर इस पूँजी को लूट सके और इसकी इजाजत कई बार मोदी जी  दे चुके है  मोदी जी कहते है कम एंड लूट इन इंडिया

भारतीय रिजर्व बैंक – डिजिटल भुगतान सूचकांक (आरबीआई-डीपीआई), जो देश भर में भुगतान के डिजिटलीकरण की सीमा को दर्शाता है, मार्च 2018 में 100 के आधार के मुकाबले मार्च 2022 में 349.30 पर रहा  यानी ये कारवाँ अब रुकने वाला नहीं

अब इसके कुछ  सरकार के प्रयासों  पर भी नज़र डाल लेते है

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) के अनुसार, फरवरी 2022 में भारत में मोबाइल फोन उपभोक्ता आधार लगभग 114 करोड़ था, जिसमें से 84 करोड़3 स्मार्टफोन थे। इसने, इंटरनेट पहुंच के साथ, जो जुलाई 2022 के अंत तक 80.7 करोड़4 तक पहुंच गई थी, डिजिटल भुगतान, मोबाइल बैंकिंग, मोबाइल वॉलेट, यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) भुगतान आदि को व्यापक रूप से अपनाने की सुविधा प्रदान की है।

सुविधा एवं सुरक्षा के खतरे 

प्रौद्योगिकी ने अंतिम उपभोक्ताओं और व्यापारियों के डिजिटल भुगतान का उपयोग करने और अनुभव करने के तरीके को बदल दिया है। केवल मोबाइल फोन का उपयोग करके बैंकिंग करना उपयोगकर्ताओं के लिए काफी सुविधाजनक साबित हुआ है। इसके अलावा, सुरक्षा की अतिरिक्त परतें – जैसे कार्ड का टोकनाइजेशन, दोहरे कारक प्रमाणीकरण, बायोमेट्रिक-आधारित भुगतान और यूपीआई के लिए भुगतान पते का वर्चुअलाइजेशन – ने उपभोक्ताओं के बीच एक डर की भावना पैदा करने में मदद की है। साइबर ठगी  में लगातार उछल हो रहा है  और सरकार के पास ऐसा कोई सिस्टम नहीं है जिसके जरिये वो इन अपराधो को रोक सके, सरकार  केवल ये ही कहती है जानकार बनिए सुरक्षित रहिये  ये कह कर अपना पल्ला झाड लेती है

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कहने को तो यूपीआई भुगतान: सामान्य ग्राहक लेनदेन या बैंक खाते-से-बैंक खाता-आधारित यूपीआई भुगतान पर कोई शुल्क नहीं लगाया जाएगा।लेकिन ये बात एकदम झूटी है इसलिए किसी भी लेन देन का कितना चार्ज लगेगा ये ग्राहक को चाहिए वो बैंक से  पहले से ही मालूम कर ले

पेमेंट गेटवे एनपीसीआई या नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया हाल ही में शुरू किए गए इंटरचेंज शुल्क के बारे में स्थिति साफ करते हुए, एनपीसीआई ने कहा कि यूपीआई के माध्यम से बैंक से बैंक खाते में स्थानांतरण निःशुल्क रहेगा।

लेकिन 1 अप्रैल, 2023 से, प्रीपेड भुगतान उपकरणों (पीपीआई) – वॉलेट या कार्ड का उपयोग करके ₹2,000 से अधिक के यूपीआई लेनदेन पर व्यापारी (भुगतान प्राप्त करने वाला व्यक्ति या व्यवसाय) पर 1.1 प्रतिशत का अतिरिक्त इंटरचेंज शुल्क लिया जाता है ये बात ध्यान रखने योग्य है

कितनी कट रही है जनता की जेब 

विभिन्न श्रेणियों के व्यापारियों के लिए इंटरचेंज शुल्क अलग-अलग होता है। यह 0.5 फीसदी से शुरू होकर 1.1 फीसदी तक होता है और कुछ श्रेणियों में एक सीमा भी लागू होती है.

दूरसंचार, शिक्षा और उपयोगिताओं/डाकघर के लिए, इंटरचेंज शुल्क 0.7 प्रतिशत है जबकि सुपरमार्केट के लिए शुल्क लेनदेन मूल्य का 0.9 प्रतिशत है। बीमा, सरकार, म्यूचुअल फंड और रेलवे के लिए लगभग 1 प्रतिशत, ईंधन के लिए 0.5 प्रतिशत और कृषि के लिए 0.7 प्रतिशत शुल्क लगाया जाएगा।

एनपीसीआई ने एक बयान में कहा, “इंटरचेंज शुल्क केवल पीपीआई व्यापारी लेनदेन के लिए लागू हैं और ग्राहकों से कोई शुल्क नहीं है।”

यह लेवी दो वॉलेट के बीच इंटरचेंज या इंटरऑपरेबल की लागत को कवर करने में मदद के लिए शुरू की जा रही थी।

एनपीसीआई ने पीपीआई वॉलेट को इंटरऑपरेबल यूपीआई इकोसिस्टम का हिस्सा बनने की अनुमति दी है और पीपीआई का उपयोग करते समय ₹2,000 से ऊपर के यूपीआई लेनदेन पर 1.1 प्रतिशत शुल्क लगाया है।

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अनिवार्य रूप से, यह शुल्क केवल व्यापारी क्यूआर कोड के माध्यम से किए गए डिजिटल वॉलेट लेनदेन पर लागू होगा।

इसका मतलब यह है कि यूपीआई जैसे पेटीएम, फोनपे, गूगल पे का उपयोग करके दोस्तों, परिवार या किसी व्यापारी के बैंक खाते में किए गए सभी भुगतान इस इंटरचेंज शुल्क से प्रभावित नहीं होंगे।

तो, इन शुल्कों का भुगतान कौन करेगा? 

प्रतिशत का शुल्क यूपीआई भुगतान पर नहीं लिया जाएगा, बल्कि केवल डिजिटल वॉलेट से यूपीआई आईडी पर किए गए ₹2,000 या उससे अधिक के भुगतान पर लिया जाएगा।

उदाहरण के लिए, यदि कोई ग्राहक किसी स्टोर पर या ऑनलाइन UPI (Paytm/Google Pay) के माध्यम से PPI भुगतान करने का प्रयास करता है, और QR कोड PhonePe का है, तो PhonePe को व्यापारी से लागू इंटरचेंज शुल्क प्राप्त होगा।

 और शुल्क व्यापारी पक्ष पर लगाया जाएगा। इसलिए, व्यापारी अतिरिक्त शुल्क उपभोक्ताओं पर डालने का विकल्प चुन भी सकते हैं और नहीं भी। लेकिन ये एक चोरी और मक्कारी का रास्ता है क्योकि इस बात की जानकारी सबको नहीं होती  इसलिए जो भी शुल्क लिया जाता है वो ग्राहक से लिया जाता है चाहे वो आप फोन चार्ज करे या कोई और काम

सबसे बड़े कमाल की बात ये है की सरकार डिजिटल पेमेंट को इसलिए भी बढ़ाना चाहती है ताकि छोटे छोटे व्यापारियो की दुकानदारों की नाक में नकेल कस  सके लेकिन वही आजतक इन कम्पनियो पर कोई नकेल नहीं कसी गई है ,ऐसे लाखो केस है जहाँ पर ग्राहकों की पेमेंट  कई पेमेंट सिस्टम में फंसी है लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं  इसके अलावा  पेमेंट वॉलेट  और बैंक अकाउंट की डिटेल क्यों इन कम्पनियो को चाहिए ये बात भी समझ में नहीं आती और इनके सिस्टम में ग्राहकों का डेटा और जानकारी  सबसे बड़ी खतरे की घंटी है .

हम  भारत में इस  डिजिटल पेमेंट सिस्टम में ऐसे कूद गए है जैसे कोई बिना  जोखिमो की जानकारी के नदी में कूद जाता है और उम्मीद करता है कि तैरते तैरते  ,हाथ मारते मारते तैरना सीख जाएंगे  जबकि ऐसा नही होता , बल्कि भारत में डिजिटल पेमेंट सिस्टम  आम लोगो की कमाई के साथ , उसके धन की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करना है  और सरकार को ये खेल बंद क्र देना चाहिए  और इन कम्पनियो पर नकेल कस कर इनका एक ऑडिट सामने आना चाहिए ताकि लोगो को पता चले की लोगो को सुविधा के नाम पर कैसे ये आम लोगो की जेब काट रहे है और सरकार इनके साथ है

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