विरोध की परम्परा का हिस्सा है मिमिक्री | मीडिया और सरकार का अशोभिनीय बर्ताव

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आज जिस तरह प्रधानमंत्री Prime Minister और ने संसद के बाहर बैठे विरोध जता रहे सांसदों में से एक  के द्वारा उपराष्ट्रपति की मिमिक्री  करने पर विरोध जताया है उससे लगता है सरकार किसी भी तरह से विरोधियो का गला दबाना चाहती है ताकि वो कुछ विरोध का स्वर न निकाल सके .

प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति  President का यह वव्हार काफी अशोभनीय  और बच्चो वाला लगता है क्योकि मिमिक्री   कला का एक  हिस्सा है और यह मिमक्री पूरी गरिमा के साथ संसद के अहाते में की गई है  इसलिए सरकार के नेताओं  और बिकायु मीडिया के प्रचंड अभियान के बावजूद इसको गलत नहीं ठहराया जा सकता है

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यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि भारत की आजादी से पहले और आजादी के बाद भी सरकारों और संस्थाओं के विरोध के लिए कविता , कहानी , नुक्कड़ नाटक , कार्टून ,फोटो, संगीत ,नृत्य नाटिका फिल्म आदि का इस्तेमाल होता रहा  है हाँ ये बात अलग हो सकती है कि  यह काम कला की गरिमा को बरकरार रखते हुए कही गई है या नहीं लेकिन कला संस्कृति  किसी भी समाज के विकास के लिए उधार के लिए एक पहिये का काम करती है यानी जिस समाज में ये कलाएं,कमजोर होंगी गुलाम होंगी वो समाज कभी भी आजाद नहीं कहा जा सकता

जब पूरी दुनिया में पूंजीवाद  चरम पर था ऐसे में कार्ल मार्क्स ने कहा था सामाजिक ,राजनैतिक परिवर्तन की लड़ाई में कला संस्कृति , साहित्य एक हथियार के रूप में काम करता है  और इन हथियारों का इस्तेमाल  फ़्रांस की क्रांति से लकर रूस की क्रांति , यहाँ तक कि यूरोप के पुनर्जागरण में बहुत काम आई है , कलाएं किसी भी समाज को शक्तिशाली और सभ्य बनाती है

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डेनियल जी. एंडुजर बार्सिलोना, स्पेन में रहते हैं। कहते है  कला को एक ऐसे राजनीतिक मॉडल के प्रतिरोध का संकेत होना चाहिए जो तेजी से पदानुक्रमित, व्यापक, वैश्विक और मानकीकृत हो रहा है। उन दर्शकों के लिए जो संस्था द्वारा लगाए गए नियमों की अवज्ञा करने का साहस करते हैं, जैसे कि उल्लंघन, अवज्ञा, नए राजनीतिक अनुभवों का निर्माण या नई आवाजों का पूर्वाभ्यास. लोकतंत्र एक सौंदर्यपरक मामला बन गया है.। हम कलाकारों का एक राजनीतिक कार्य होता है जिसके लिए स्पष्ट नैतिक पदों की आवश्यकता होती है। भाषा दुनिया को बदल सकती है – या बदलनी चाहिए। यह कलाकार के सबसे प्रभावी उपकरणों में से एक है।

लेकिन ऐसा लगता है वर्तमान सरकार ने विरोध के सभी स्वरों को हमेशा के लिए दबाने की या खामोश करने की ठान ली है हलांकि ये कोई पहला ऐसा मामला नहीं है  इसके  पहले श्याल रंगीला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी जैसे कई लोगों की मिमिक्री की थी लेकिन मोदी सरकार उसके साथ काफी सख्ती से पेश आई है इसी तरह

इसी तरह मुनवर फारूकी  नाम के स्टैंडअप कॉमेडियन को वह उस वक्त चर्चा में आए थे जब 2021 में उनके एक एक्ट को लेकर जेल की सजा हुई थी। मुनव्वर पर धार्मिक भावनाएं आहत करने का आरोप लगा और उन्हें 37 दिन जेल की सजा काटनी पड़ी थी  जबकि इसके बाद भी उनके जीवन के हलात सरकार ने ऐसा कर दिया था जैसे उन्होंने  मृत्यु की सजा के लायक कोई कार्य कर दिया हो

 वर्तमान सरकार में   फिल्मो से लेकर लेखको तक फ़िल्मी कलाकारों तक को धमकाया जा रहा है

अगर हम उपराष्ट्रपति की मिमिक्री की  विवेचना करे तो यह घटना संसद परिसर में हुई और उस वक्त में हुई जिस वक्त सभी सांसदों को बिना किसी नियम कानून के संसद से निलम्बित कर दिया गया ऐसे में कविता कहना , एक्टिंग करना ,शेर कहना  विरोध के गीत गाना  या कोई नाटक करना सब कुछ होता है लेकिन खुद उपराष्ट्रपति अब अपने पद की गरिमा को गिराते जा रहे है जैसा की विपक्ष कहता है कभी सहानभूति प्राप्त करने के लिए अपने आप को किसान बता रहे है और सरकार यानी भाजपा के नेता कभी इसे जातिवाद में बदलना चाह रहे है कभी संसद की गरिमा बता रहे है जबकि  मोदी और सरकार का मकसद  आम जनता की समस्याओं से ध्यान हटाना है और बिना वजह हंगामा करना है

TMC MP Mimicked Vice President Jagdeep Dhankad

Faul hue and cry over mimicry of rajya sabha speaker Mimicry is the part of tradition of Protest ,

art is the biggest most effective weapon of protest .

art can change the world

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