महिला आरक्षण : इतिहास का सबसे बड़ा धोखा : Surender Kumar

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नई संसद में महिला आरक्षण बिल पास हो गया इसके बाद भाजपा ने अपने जाने माने अंदाज में प्रधानमंत्री मोदी जी का स्वागत समारोह किया और इस खबर को ऐसे  दिखाया  और बताया जा रहा है जैसे बहुत इतिहासिक काम हो गया हो

लेकिन एक बात पक्की है कि ये काम तो इतिहासिक हुआ है लेकिन इतिहासिक उपलब्धी नहीं बल्कि इतिहासिक धोखा हुआ है देश के साथ .

देश में अब तक जितनी भी महिलाए राजनीती में आई है उसमे से ९५ % महिलाए सवर्ण  अमीर घरानों से आई है   सबसे बड़ी बात ये महिलाए एक प्रतिशत भी अपने आप अपने ऑफिस के निर्णय  नहीं लेती है इनकी  जगह इनके पति  ही इनके निर्णय लेते है यानी अपरोक्ष रूप से पुरुष ही राज करते है

इसके अलावा महिलाओं के नाम पर बहुत सारे पद   आरक्षित है जिनके मजे ये सवर्ण महिलाए ही उठाती है  जैसे इन महिलाओं की जाति की आबादी है  उसमे से आधी महिलाए ही आगे आई हुई है

एक आंकड़े के अनुसार महिला शिक्षा भारत में महिला शिक्षा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारतीय महिलाओं की साक्षरता दर 64.6% थी। यह संख्या पुरुषों की साक्षरता दर 80.9% की तुलना में काफी कम है।

लेकिन इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि एस सी एस टी  ओ बी सी  और मुस्लिम महिलाओं की शिक्षा की कोई जानकारी सरकार के पास नहीं है और न ही इनसे सम्बन्धित विभागों के पास इसकी जानकारी है , बल्कि एक अनुमान के अनुसार इन शोषित गरीब महिलाओं की मात्र दो प्रतिशत महिलाए ,लडकियाँ  ही शिक्षित है

ग़ाव देहातो में ये संख्या  एक प्रतिशत से भी कम है और ऐसा माहौल बना दिया जाता है सवर्ण और जाति आतंकवाद के जरिये कि एस सी  एस टी  लोग अपनी लड़कियों को पढ़ाने के लिए ही स्कूल नहीं भेजते   और अगर भेजते है तो पांचवी या आठवी के बाद से ही स्कूल छुडवा देते है

इसलिए हम देखते है कि देश के सभी बड़े बड़े संस्थानों में जैसे आई आई टी , आई आई एम् , एम्स जैसी जगहों पर  दलित लडकियां  ना के बराबर आती है और अगर आ जाए तो पायल तडवी जैसे केस हो जाते है .

पिछले पांच साल में  एस सी एस टी ओ बी सी समाज के  पच्चीस हजार  छात्रों ने जाति उत्पीडन की वजह से या तो उच्च संस्थान छोड़ दिए या आत्म हत्या कर ली इतने लोग तो भारत पाक  युद्ध में भी नहीं मारे गए थे

इसलिए जब तक कोटे में कोटा , और पूर्ण सुनिश्चित कोटा एस सी एस टी ओ बी सी समाज को नहीं दया जाएगा  उस वक्त तक ये केवल दलित समाज के उत्पीडन का रास्ता बना रहेगा  बल्कि इसके ऐसे देखा जा सकता है कि सवर्ण समाज अपने लिए सविंधान में सविंधान  बना रहा  है जैसे पहले से सत्तर प्रतिशत जगह पर कब्जा करने बावजूद दस प्रतिशत ई डब्लू एस कोटा   ३३ % महिला कोटा  , ई डब्लू एस के लोगो के लिए इनकम टैक्स के नियम अलग अलग से आरक्षण  शिक्षा , न्याय पालिका , स्कूल कॉलेज  हर जगह अस्सी प्रतिशत से ज्यादा सवर्ण भरे है तो ऐसे में बाकी देश के लोग कहा जाएंगे ??

ये बात समझ लेनी चाहिए की एस सी एस टी जिनकी संख्या लगभग तेईस  प्रतिशत पिछड़ी जातियां जिनकी संख्या बावन प्रतिशत है लेकिन इनकी भागीदारी दो प्रतिशत नहीं है इनकी संख्या शिक्षा में नौकरी में राजनीती में कही भी  उंगलियो पर गिनी जा सकती है जबकि नौकरी , राजनीती शिक्षा में अपर कास्ट की महिलाए सबसे आगे रहती है अब अगर  महिला आरक्षण अपने मौजूदा रूप में पास हो जाता है तो दस प्रतिशत सवर्ण के लिए आरक्षण पहले से है बावजूद सभी अस्सी प्रतिशत संस्थानों में नौकरियो में राजनीती में हर जगह सवर्ण है  इसके बाद पचास  प्रतिशत महिला आरक्षण से ये ही अपर कास्ट की महिलाए ही आगे आयंगी और जिन महिलाओं को इसकी जरूरत है मूह देखती रह जाएंगी जैसा की सदीओ से होता  आ रहा है

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महिला विकास उनके उत्थान पर सबसे पहले आजाद भारत में

डॉ आंबेडकर  ने भारतीय नारी को पुरुषों के मुकाबले बराबरी के अधिकार दिए था । भारतीय समाज में लैंगिक असमानता को खत्म करने के लिए उन्होंने बाकायदा संविधान में लिंग के आधार पर भेदभाव करने की मनाही का इंतजाम किया। आर्टिकल 14 से 16 में महिलाओं को समाज में समान अधिकार देने का भी प्रावधान किया गया है। इसके अलावा इनको पिता की सम्पति में सामान अधिकार ,नौकरी करने वाली महिलाओं को मत्रिनिटी बेनिफिट जिसमे छ महीने तक की पेढ लीव का प्रावधान रखा लेकिन इनका विरोध किया गया

लेकिन इतने सालो तक  जो काम डॉ. आंबेडकर १९५६ में करना चाहते थे अब जाकर २००४ में जाकर प्राप्त हुआ

महिला आरक्षण का समर्थन  सभी अपर कास्ट की महिलाए कर रही है मीडिया में भी ऐसा ही दिखाया जा रहा है लेकिन जो दबी हुई महिलाएं है उनकी आवाज को दबाया ही जा रहा है

कुल मिला कर वर्तमान महिला आरक्षण कानून केवल इस देश की ९७ % आबादी के साथ धोखा है या चुनावी स्टंट है इसके अलाव कुछ नहीं

और इस धोखे को देश बर्दास्त नहीं कर सकता

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