रिश्तों के जख्म जब रिसने लगे बेहतर है अलग हो जाना : सुप्रीम कोर्ट का तलाक पर ऐतिहासिक फैसला: Advocate Pramod Kumar ,Supreme Court
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रिश्तों के जख्म जब रिसने लगे बेहतर है अलग हो जाना : सुप्रीम कोर्ट का तलाक पर ऐतिहासिक फैसला
चाहे कोई भी धर्म हो समाज हो भारत में शादी को एक पवित्र बंधन माना जाता है लेकिन शादी से पहले की प्रक्रियाओं में खामी की वजह से ये रिश्ते बाद में नासूर बन जाते है , कई जगह पर जब इस घुटे हुए रिश्ते से निकलने में बहुत मुश्किल होती है तो ये ही रिश्ते खून और अपराध के रिश्ते बन जाते है , आपने सूना ही होगा पत्नी ने पति का कत्ल करा दिया , पति ने पत्नी का कत्ल करा दिया आदि आदि लेकिन अब सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया है कि अगर पति-पत्नी के बीच रिश्ते इस कदर टूट चुके हैं कि ठीक होने की गुंजाइश न बची हो तो इस आधार पर वो तलाक की मंजूरी दे सकता है जबकि अभी तक ऐसा होता था कि तलाक के लिए पति-पत्नी को 6 महीने तक इंतजार करना पड़ता था।
कुछ केस में तो ऐसा हुआ कि शादी के बाद सिर्फ एक रात रुक कर लड़की कभी अपने सुसराल नहीं लौटी पति ने तलाक का मुकदमा किया तो लड़की न तो आने के लिए तैयार हुई और न ही तलाक दिया और इस तरह तलाक का यह मुकदमा बत्तीस साल तक चला यानी लड़का और लड़की का पूरा जीवन अदालतों में ही बीत गया और यह एक केस ऐसा नहीं है ऐसे हजारो मुकदमे देश की अदालतों में चल रहे है
ऐसी ही ह्लातो पर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायिर हुई थीं, जिसमें कहा गया था कि क्या आपसी सहमति से तलाक के लिए भी इंतजार करना जरूरी है?
लेकिन अब ऐसे मामलों में फैमिली कोर्ट की बजाय सीधे सुप्रीम कोर्ट से तलाक लिया जा सकता है। जस्टिस एसके कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एएस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी की संवैधानिक इस पर सुनवाई कर रही थी।
याचिकाएं में मांग की गई थी कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13B के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए जरूरी वेटिंग पीरियड में छूट दी जा सकती है या नहीं? ये मामला 29 जून 2016 को संवैधानिक बेंच के पास गया था।
पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 142 तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल कर सकती है और आपसी सहमति से तलाक के लिए 6 महीने के जरूरी वेटिंग पीरियड को कुछ मामलों में खत्म कर सकती है।
अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट को ऐसा आदेश या डिक्री पास करने का अधिकार देता है जो अदालत के सामने लंबित किसी भी मामले में ‘पूर्ण न्याय’ के लिए जरूरी है। 1955 के हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13 में ‘तलाक’ का प्रावधान किया गया है। इसमें उन स्थितियों का जिक्र है जब तलाक लिया जा सकता है। इसके अलावा इसमें आपसी सहमति से तलाक का भी जिक्र है।
तो यह जजमेंट उन लोगो के लिए वरदान है जो कई सालो से सिर्फ तलाक की प्रक्रियाओं से गुजर रहे है और उनके लिए तलाक चाँद पर जाने जैसा सफर बन गया है जो शायद इस जीवन में कभी खत्म नहीं होगा और खत्म होगा तो तो उनका सारा जीवन ही ले बैठेगा