गरीबो के लिए शिक्षा को ऐसे बर्बाद किया है मोदी ने , दो लाख से ज्यादा सरकारी स्कूल बंद ,दस लाख  शिक्षको की कमी , एक लाख स्कूल केवल एक शिक्षक के भरोसे

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भारत में १९४७ के बाद देश में परिवर्तन लाने के लिए सविंधान ने सभी को समान अधिकार दिए सभी के लिए शिक्षा के लिए द्वार खुले तो सदीओ से गरीब , पीड़ित अशिक्षित लोग स्कूल कॉलेज जाने लगे

मकसद यही था देश के विकास में सभी वर्गों का योगदान हो और ये योगदान तभी होगा जब सब  शिक्षित होंगे , लेकिन देश की सभी सरकारे शुरू से ही अपनी अपनी लूट में लगी रही और किसी ने भी दूरदृष्टि से काम नहीं किया और यही कारण रहा देश में लगातार जनसंख्या बढती गई लेकिन बढती जनसंख्या के अनुपात में स्कूल नहीं बनाये गए ,जब छात्रो की संख्या बढ़ी तो सरकार ने एक इस देश के खिलाफ एक षड्यंत्र रचा वो षड्यंत्र था मेरिट का यानी जिसके मार्क्स ज्यादा होंगे उसको ही स्कूल कॉलेज में दाखिला मिलेगा यानी जनता को देश के छात्रो को आपस में ही मेरिट के नाम पर लड़वाना शुरू कर दिया जिस तरह मुर्गे के पाँव में छुरा बाँध कर एक दुसरे से लड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है ठीक उसी तरह यानी एक मारा जाएगा तो एक बचेगा

इस तरह देश की प्रतिभा के साथ में खिलवाड़ किया गया जबकि दलितों में एस सी एस टी और ओ बी सी के छात्रो के साथ तो और भी ज्यादा बुरा हुआ अगर किसी तरह एस सी वर्ग का छात्र देश के उच्च संस्थानों में पहुच  जाए तो तो उसे जाति के नाम पर प्रताड़ित करना शुरू कर दिया . एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले तीन सालो में एस सी एस टी और ओ बी सी के पच्चीस हजार छात्रो ने जाति के उत्पीडन के कारण देश के बड़े बड़े संस्थानों को छोड़ दिया

लेकिन पिछले दस सालो में देश में शिक्षा की दुर्दशा बहुत बुरी हुई है एक तरफ  शिक्षण संस्थानों को बंद किया जा रहा अहै ताकि गरीब परिवार के बच्चे पढ़ न सके वही शिक्षा में निजी स्कूल कॉलेज आने से शिक्षा महंगी भी होती जा रही है और ये काम विशेषकर पिछले दस सालो में बहुत बुरी रही है

UDISE  की साल 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल 14,08,115 स्कूल हैं. साल 2021 में यह आंकड़ा 15,09,136 था. इससे साफ पता चलता है कि एक साल में 1,01,021 स्कूल बंद हो गए हैं. वहीं, 2019 में स्कूलों की संख्या 15,51,000 थी. कोरोना काल में कुछ स्कूलों को काफी नुकसान हुआ था. शायद इसलिए भी 2022 तक स्कूलों की संख्या में काफी गिरावट दर्ज की गई है

 इसके अलावा   भारत में 11,96,265 प्राइमरी स्कूल हैं.

सेकंडरी स्कूल  (Secondary Schools in India)- सेकंडरी स्कूल में 12 से 16 साल की उम्र तक के बच्चे पढ़ते हैं यानी 10वीं कक्षा तक के. भारत में 1,50,452 सेकंडरी स्कूल हैं.

हायर सेकंडरी स्कूल   ( Higher Secondary Schools in India)- इनमें 16 से 18 साल तक की आयु यानी 11वीं और 12वीं कक्षा वाले स्टूडेंट्स पढ़ते हैं. भारत में 1,42,398 हायर सेकंडरी स्कूल हैं.

 

भारत में कितने छात्र हैं

UDISE  की साल 2022 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 26,52,35,830 यानी 26 करोड़ 52 लाख 35 हजार 830 स्टूडेंट्स हैं. इनमें से 18,86,32,942 स्टूडेंट्स प्राइमरी स्कूल में हैं, 3,85,28,631 सेकंडरी में और 2,85,79,050 हायर सेकंडरी में. 14,32,40,480 छात्र सरकारी स्कूल में पढ़ाई कर रहे हैं, 8,82,71,316 निजी में और 2,70,39,457 सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में.

अगर में इन स्कूलों में शिक्षक देखने तो  देश में करीब 1.2 लाख स्कूल ऐसे हैं, जहां केवल एक ही टीचर है। देश की बड़ी आबादी वाले राज्य इस मामले में सबसे आगे हैं। इसके साथ ही छात्र-शिक्षक अनुपात भी काफी कम है। अगर हम उत्तर प्रदेश की बात देखे तो वहा पर एक लाख पचहतर हजार शिक्षको की कमी है जब चार फरवरी २०२४ को उत्तर प्रदेश के शिक्षा मंत्री से पूछा गया कि शिक्षको की भर्ती कब होगी तो शिक्षा मंत्री ने साफ़ माँ कर दिया क्योकि शिक्षको का काम शिक्षा मित्र और अनुदेशक कर रहे है यानी प्रदेश के पढ़े लिखे युवा बेरोजगार ही घूमते रहेंगे  देश में शिक्षा की दुर्दशा विशेषकर भाजपा शासित प्रदेशो में ज्यादा हो रही है पिछले दस सालो में केवल गुजरात में पांच हजार  सरकारी स्कूलों को बंद किया गया है और उत्तर प्रदेश में पच्चीस हजार से ज्यादा स्कूल  बंद कर दिए गए इनकी मंशा देश से सरकारी स्कूल कोलेज पूरी तरह  बंद कर के शिक्षा का निजीकरण करना है यानी गरीबो से शिक्षा दूर गरीब बच्चो को मंदिर का घंटा पकडाया जाएगा

 

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केंद्र सरकार ने 2023-24 के बजट में शिक्षा क्षेत्र के लिए 1.13 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए, जिससे स्कूलों और उच्च शिक्षा पर अनुमानित खर्च 2022-23 की तुलना में 8.3 फीसदी बढ़ गया है। लेकिन हाल ही में संसद में सवालों के जवाब में पता चला कि भारत में अभी भी शिक्षा का हाल ठीक नहीं है। अभी इसमें काफी सुधार की जरूरत है। छात्र-शिक्षक अनुपात और एक टीचर वाले स्कूलों की संख्या प्रशिक्षित अध्यापकों की कमी के गंभीर मुद्दे की ओर इशारा करती हैं। इसके अलावा देशभर में एक ओर जहां डिजिटल इंडिया की बात हो रही है वहीं लाखों स्कूल अभी तक इंटरनेट कनेक्टिविटी से दूर हैं।.

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शिक्षा किसी भी समाज की देश के विकास की चाबी होती है और हम जिस भी समाज से शिक्षा छीन लेंगे वो समाज स्वत ही गुलाम हो जाएगा  वर्तमान मोदी सरकार का अंतिम उदेश्य वंचित समाज को शिक्षा से एकदम दूर करना है

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यूनेस्को ने ‘2021 स्टेट ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट फॉर इंडिया – नो टीचर्स, नो क्लास’ शीर्षक अपनी रिपोर्ट में कहा है कि भारत में करीब 1.10 लाख ऐसे स्कूल हैं जो महज एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. इसके अलावा शिक्षकों के 11.16 लाख पद खाली हैं, उनमें से 69 फीसदी ग्रामीण इलाके के स्कूलों में हैं. अरुणाचल और गोवा जैसे राज्यों में ऐसे स्कूलों की संख्या सबसे ज्यादा है. प्रोफेसर पद्म. एम. सारंगपाणि की अगुवाई में मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के विशेषज्ञों की एक टीम ने यूनेस्को की एक टीम के साथ मिलकर यह रिपोर्ट तैयार की है. इसके अलावा एक लाख से ज्यादा स्कूल केवल एक टीचर के भरोसे चलते है

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