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दिल्ली यूनिवर्सिटी में जातिय आतंकवाद का एक और धमाका प्रोफ. लक्ष्मण यादव बर्खास्त

दिल्ली यूनिवर्सिटी  Delhi University ने प्रधान  मंत्री नरेंदर मोदी के खिलाफ  बोलने  यानी सत्ता के खिलाफ बोलने के लिए यानी बहुजन समाज  के हक की आवाज उठाने के लिए बहुजन समाज के लिए मुखर और प्रखर आवाज प्रोफ. Laxman Yadav  को नौकरी से बर्खास्त कर दिया  है .

सबसे बड़ी बात हर  बता में अव्वल होने के बावजूद  एक अच्छे शिक्षक होने के बावजूद  लक्ष्मण यादव को नौकरी से निकाला गया है . लक्ष्मण यादव का अकेडमिक रिकॉर्ड जो उनकी ट्वीटर /एक्स की वाल से प्राप्त हुआ है  पाठक खुद देख ले  बावजूद उनको निकाला गया है

Prof. Laxman Yadav termination Letter of Delhi University

Prof. Laxman Yadav Merit Certificate

 

“”” (API) : 96/100 ये चार नम्बर भी इसलिए कम हुए कि हमारे BA MA में 80% से ज़्यादा नहीं हैं। अन्यथा 100/100 होते। भले ही ये इंटरव्यू के पहले की पात्रता है। बावज़ूद इसके अगर आपको परमानेंट नहीं किया जाए, तो एक बात स्पष्ट है, यहाँ नियुक्ति पाने के लिए ‘मेरिट’ की ज़रूरत नहीं। विभागाध्यक्ष के मुताबिक़ मेरा इंटरव्यू भी सबसे अच्छा हुआ। फिर किस आधार पर हमें बाहर किया गया? क्यों बहुत कम API पर नियुक्तियाँ हो रही हैं? क्या कारण है मुझे निकालने का? ये सवाल हैं मेरे। जवाब तो देना पड़ेगा डीयू प्रशासन। क्या RSS की शाखाओं में मैं नहीं गया, किसी प्रोफ़ेसर की कभी चापलूसी न की, इसीलिए नौकरी छीन ली? कारण बताओ डीयू। देशवासियों! ये सब आप भी जान सकें, इसलिए अपना सब दाव पर लगाकर आपको बता रहा हूँ कि आपके देश के विश्वविद्यालय बर्बाद कर दिए गए हैं। बचा सकें तो बचा लीजिएगा।”””

Prof. Laxman Yadav

ये बात गौर तलब है ये कोई  नई बात नहीं  है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में किसी दलित प्रोफ. टीचर को केवल जातिगत भेदभाव के कारण निकाला गया है  इससे पहले  प्रोफ. रतन लाल को निकाला गया  जिन्हें कोर्ट से राहत मिली , इसी तरह  प्रोफ. ऋतू  सिंह है जो आज सत्तर दिनों से भी  समय से  कॉलेज के बाहर  धरने पर बैठी  है  और अब प्रोफ लक्ष्मण यादव की बारी आ गिया है

एक बात आर विशेष रूप से  की ये बात केवल दिल्ली दिल्ली यूनिवर्सिटी तक सिमित नहीं है  बल्कि दलितों –ओ बी सी  मुस्लिम  बहुजनो के खिलाफ पुरे देश में एक जिहाद छेड़ दिया गया है   पिछले दिनों संसद में एक रिपोर्ट पेश की गई  तो पुरे दुनिया के लोग हक्के बक्के  रह गए कि किस तरह एक वर्ग को बर्बाद करने के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया जा रहा है एक न्यूज़ पेपर में प्रकाशित खबर में देखे

अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अन्य अल्पसंख्यक समूहों के कुल 25,593 आरक्षित श्रेणी के छात्रों ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) से पढ़ाई छोड़ दी है। पिछले पांच वर्षों में, शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष सरकार राज्यसभा को सूचित किया।

 आंकड़ों से पता चलता है कि 2019 और 2023 के बीच अब तक केंद्रीय विश्वविद्यालयों से आरक्षित श्रेणी के 17,545 और आईआईटी से 8,139 छात्रों ने पढ़ाई छोड़ दी।

Prof. Ratan Lal Delhi University

स्नातक कार्यक्रमों के लिए, छात्रों के पीछे हटने के शीर्ष कारणों में “गलत विकल्प भरना, खराब प्रदर्शन और व्यक्तिगत और चिकित्सा कारण” शामिल हैं। ऐसा जातिवादी रिपोर्ट्स में बताया गया है लेकिन सबसे बड़ा कारण जातिवादी मानसिकता और उत्पीडन है जिसे सरकार और संस्थाए मिलकर छिपा रही थी लेकिन सच सामने आ गया

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पिछले दिनों  उत्तर प्रदेश में आई नौकरियो में आरक्षण गायब मिला जानबूझ कर एस सी और एस टी ओ बी सी आरक्षण न के बराबर मिला जबकि अनुपात में ये ज्यादा होना चाहिए इसके विपरीत  ई डब्लू एस  आरक्षण के नाम पर केवल ब्राह्मण जाति के लोगो को ही भरा जा रहा  है

इसके अलावा सरकार की एक और सरकारी तरीका सामने आया की दलितों  के इलाको से स्कूल  पुरे तरह से गायब कर दिए जाए यानी कुछ जगह  स्कूल है तो टीचर  नहीं है  निति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार भारत में

Pro. Ritu Singh ,Delhi University

10 लाख शिक्षकों की है कमी”

इस बात का दावा नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में किया है। हालांकि, रिपोर्ट में देश में 10 लाख शिक्षकों की कमी बताई गई है। इसके अलावा शिक्षकों के आंकड़ों को लेकर ग्रामीण और शहरी क्षेत्र का भी आंकलन किया गया है। कई राज्यों में शिक्षण नौकरियों के लिए 30-50 प्रतिशत के बीच रिक्तियां हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में शहरी क्षेत्रों में अधिक शिक्षक हैं। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षकों की कमी हैं और कई पद खाली हैं।

केवल उत्तर प्रदेश का हाल तो बुरी तरह खराब है यहाँ

शिक्षकों के 1.39 लाख पद, शिक्षा मंत्रालय ने राज्‍यसभा में दिया येजवाब यूपी के परिषदीय स्कूलों मेंशिक्षकों की संख्या एक साल में 1.39 लाख कम हो गई। बेसिक शिक्षा विभाग के चौंकानेवालेआंकड़े शिक्षा मंत्रालय नेराज्यसभा मेंपूछे गए एक सवाल के जवाब मेंदो अगस्त को प्रस्तुत किया है। जवाब में 2020-21, 2021-22 और 2022-23 मेंशिक्षकों के स्वीकृत, कार्यरत और रिक्त पदों की सूचना दी गई है। इसके मुताबिक 2021-22 मेंजहां शिक्षकों के स्वीकृत पदों की संख्या 7,19,399 थी वहीं 2022-23 में 5,79,622 रह गई। साफ हैकि एक साल मेंही पदों की संख्या में 1,39,777 कमी हो गई।

पदों की संख्या कम होनेका सीधा असर शिक्षकों के रिक्त पद में  देखने को मिलता है। 2021-22 मेंरिक्त पदों की संख्या जहां 2,65,805 थी वहीं 2022-23 में घटकर 1,26,028 रह गई। यानि रिक्त पदों मेंकमी भी 1,39,777 की ही हुई है। आश्चर्यकी बात हैकि कोरोना काल में बड़ी संख्या मेंलोगों की नौकरी जाने, व्यापार चौपट होनेऔर अन्य कारणों से सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ी है। इस लिहाज से शिक्षकों के पदों की संख्या भी बढ़नी चाहिए। जबकि इसके उलट स्वीकृत पद 1.39 लाख कम हो गए।

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अगर हम केवल देश के  सभी केंद्रीय विश्वविद्यालय की बता करे तो यहाँ पर ओ बी सी समुदाय का एक भी प्रोफसर नहीं है एस सी  समुदाय से दो प्रोफसर है   जबकि प्रह्मन ७८ % से भी ज्यादा है और ये संख्या केवल इसलिए है क्योकि जातिवादियो ने अपना एक ईको सिस्टम बना लिया है   और इनके ईमानदारी वाले इस सिस्टम के लिए कहावत है कि अंधा बांटे रेवड़ी और सिर्फ अपने अपनों को दे यानी योग्य कैंडिडेट नहीं मिला इसलिए ब्राह्मण घुसा , किसी ने अप्लाई नहीं किया इसलिए ब्राह्मण घुसा ,

शिक्षा के मंदिरों के जरिये जिस  तरह  का दमन बहुजन समाज का  चल रहा है  ये न तो समाज निर्माण के लिए सही है बल्कि राष्ट्र निर्माण के लिए बड़ा ही घातक है

Delhi University has terminated Prof. Laxman Yadav working in Zakar Hussain College allegedly speaking against BJP Government but it seems not to be true as Prof. Yadav is tirelessly speaking against   all the atrocities being meted to SC,ST and OBC  Society in General

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