जातिवाद –एक मानसिक रोग ,नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम  में किया जाए शामिल

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जातिवाद –एक मानसिक रोग ,नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम  में किया जाए शामिल

 Caste & Mental health   जाति का अभिमान आप एक उच्च जाति में पैदा हुए है आप एक महान जाति में पैदा हुए है , आप ईश्वर की सन्तान है , आप कुछ भी अपराध करे लेकिन आपको सजा नहीं दी जा सकती है , आपको ये भी अभिमान है कि आप पैदाइशी बुद्धिजीवी और महान है .

जबकि एक छोटी जाति का व्यक्ति आपसे ज्ञान ,बल ,वित्त हर चीज में आगे है लेकिन उसकी ये हिम्मत नहीं होनी चाहिए कि आपसे ऊँची आवाज में बात करे , आपके सामने से वो आपको बिना सलाम ठोके निकल जाए या वो घोड़ी पर बैठे कर बरात निकाले . आप उसको मारे पीटे ये आपका मौलिक अधिकार है तो समझ लीजिये आप एक मानसिक रोग से जूझ रहे है

यह मानसिक रोग परिवार से समाजीकरण की प्रक्रिया के तहत आपकी नसों में आपके दिल दिमाग में घुला बैठा है लेकिन आपको यह अहसास नहीं कि आप एक मानसिक रोग से पीड़ित है जिसे हम जातिगत  पूर्वाग्रह कहते है यकीन मनोवैज्ञानिको ने इसकी विवेचना काफी आगे बढ़कर की है वह भी वैज्ञानिक आधार पर

कुछ लोगो को लगता है कि जाति की समस्या सिर्फ हिन्दू समाज में है जबकि जाति एक ऐसा जहर है जिसने भारत के सभी धर्मो को निगल लिया है , जैसे सिखों में मुसलमानों में , इसाई सभी धर्मो में जातिवाद फ़ैल गया है जबकि केवल हिन्दू को छोड़ सभी धर्मो में समानता की बात कही गई है ,

मुस्लिम में जो सबसे ज्यादा समानतावादी बताते है वहा समानता केवल मस्जिद तक रह गई है बाकी जगह जाति का भेदभाव बाकी लोगो की तरह ही है

भारत में जाति की समस्या एक विकराल रूप ले चुकी है वही पीड़ित जातिया अपने अलग दल और सन्घठन बना कर जातिवाद से लड़ाई लड़ रहे है और अपने लिए न्याय की मांग कर  रहे है वही जातिवादी मीडिया और बुद्धिजीवी इन्ही लोगो को समाज में जातिवाद फैलाने का समाज में विषमता फैलाने का जिम्मेदार मानती है और  यह साबित करने में लगी रहती है कि   जातिवाद का विरोध करना भारत की  संस्कृति , देशभक्ति और धर्म के खिलाफ है    यानी अन्याय से लड़ना ही अन्याय बन गया है  जब तक जातिवादी उत्पीडन का जहर पीते  रहो तो ठीक एक बार विरोध किया तो जातिवादी और देशद्रोही बन गए ये सब साबित करना चाहता है भारत का  जातिवादी मीडिया

देश के सभी हिस्सों में घोड़ी चड़ कर  बरात निकालने वाले दलितों पर हमले से लेकर शिक्षण संस्थानों में जातिगत भेदभाव के कारण कई दलित छात्रो की द्वारा आत्महत्या ने भारतीय  संस्कृति और समाज और कानून वाव्य्स्था पर सवाल खड़े कर दिए है और भारत  में फैली आधुनिकता के भोंडेपन को भी उजागर कर दिया है

 दर्शन सोलंकी ,पायल तडवी ,  रोहित  वेमुला की आत्महत्या के केस में कॉलेज प्रशासन ने जांच के नाम पर लिपा पोती करके यह कह दिया कैंपस में कोई भी जातिवाद नहीं है और बाकायदा रिपोर्ट में कहा है कि दलित छात्र मानसिक रूप से पीड़ित होते है इनके अंदर हीन भावना रहती है ये समाज के ह्लातो से मुकाबला करने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं रहते जबकि कहानी बिलकुल उलटी है क्योकि जातिवादी शिक्षक,  सहपाठी दलितों को नीचा दिखाने के लिए उन्हें जातिसूचक गालिया या अपमानित करते है  और लगातार  करते है , यहाँ तक कि इनका समाजिक बहिष्कार किया जाता है और अगर इनके पास कोई इन्हें सपोर्ट देने आता है तो जातिवादी सर्किल उसे ऐसा करने नहीं देता तो ऐसे में मुख्य अपराधी उच्च जाति के लोग है जो समाज में हमेशा  जातिवादी गंदगी फैलाते रहते है ,जातिवाद के नारों के साथ अपने आपको श्रेष्ट बताते है

जबकि सभी तरह की परीक्षाओं , खेल कूद और जीवन के हर क्षेत्र में एस सी एस टी ओ बी सी आज अपर कास्ट से ज्यादा प्रतिभावान साबित हो रहे है बल्कि यह साबित हो गया है कि एस सी एस टी ओ बी सी छात्रो को युवाओं को जानबूझ कर पीछे रखा जाता है परीक्षाओं में उनको फेल कर दिया जाता है और यही कारण  है कि आजतक  इतने सालो के आरक्षण के बाद भी ये लोग समाज में अपना प्रतिनिधितिव  नहीं  बना पाए है

जातिवाद के प्रश्न पर मनोवैज्ञानिको ने अपनी तीखी प्रक्रियाए  प्रस्तुत की है उन्होंने जातिवाद को एक सीरियस  मनोवैज्ञानिक रोग बताया है   अपने आपको भगवान् का अवतार और प्रतिनिधि बताने वाले  लोगो को सिजोफ्रेनिया के रोग से ग्रसित बताया है तो जाति के महान होने के वहम को पेरोनोया  बताया है  यानी खतरनाक मानसिक रोग , अगर हम इस मानसिक रोग के समान्य विवेचन पर जाए तो ९९.९ % अपर कास्ट लोग इस रोग से ग्रसित मिलेंगे  जबकि जाति से पीड़ित  होने वाले लोगो को  हीन भावना से ग्रसित बताया और और इस रोग को इस समस्या को खुद ही दूर करना होगा  यानी जो ग्रसित लोग है उनके लिए सलाह मशविरा काम  कर जाएगा और इसके अलावा इन्हें यह ध्यान रखना होगा कि इनके बच्चे  ऐसे जातिवादी माहौल में न रहे जहा  लोग सिर्फ जाति के नाम अपर अपने आपको ग्रवित  और महान महसूस करते है चाहे इन्हें वो जगह छोडनी पड़े या स्कूल कॉलेज बदलना पड़े .

लेकिन ग़ाव हो या शहर पढ़ा लिखा हो या अनपढ़ अपर कास्ट के लोग अपवादों को छोड़ कर घोर जातिवादी मिलेंगे , अपवादों में आने वाले लोग खुद जाति से लड़ते भी है

जबकि  बहुसंख्यक अपर कास्ट को   यानी जातिवादियो को तुरंत  ईलाज की जरूरत है  जरूरत पढने पर इन्हें करेक्शन होम या पर्सनालिटी डेवलपमेंट  सेंटर  में भर्ती  कराना चाहिए जिसमे मुख्य रूप से काउन्सलिंग और वव्हार ट्रेनिंग होती है

इसके अलावा  व्यापक स्तर पर काम करने के लिए जातिवाद से निपटने के लिए  जातिवादी अपर कास्ट के लिए  नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम  के जरिये  भी  इलाज होना चाहिए और समान्य लोगो के लिए भी सभी तरह की वव्हार ट्रेनिंग और मानसिक स्वास्थ  शिक्षा का प्रबंध किया जाना चाहिए

Caste is a psychopathic disorder

National mental health programme

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