झूट क्यों बोलते है लोग , झूट बोलने वाले व्यक्ति का   मनोवैज्ञानिक प्रोफ़ाइल . मानसिक बिमारी है 

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झूट क्यों बोलते है लोग , झूट बोलने वाले व्यक्ति का   मनोवैज्ञानिक प्रोफ़ाइल . मानसिक बिमारी है 

दुनिया के इतिहास में ऐसे बहुत सारे लोग है जिन्हें झूट बोलने की वजह से प्रसिदगी मिली है जैसे शेख चिल्ली , कहा जाता है कि ये बहुत झूट बोलता था

आम भाषा में इसे डींग मारना भी कहते है , कुछ इसे स्थानों पर इसे गप्पी  कहते है

भारत में आजकल इस काम के लिए फेंकू शब्द का प्रचलन है झूट बोलने वालो की वजह से कुछ लोग दुसरो का पैसा हडप लेते है , कुछ लोगो के साथ विश्वासघात  किया जाता है , कुछ लोगो का मानना है कि  जिस झूट से किसी का भला हो , किसी की जान बचे उसे झूट नहीं कहा जाएगा

खैर एक यह भी बता है कि जब बिना मतलब के या एक जिम्मेवार आदमी बिना किसी बात के  किसी अच्छे मकसद के जब झूट बोले  तो उसे बुरा ही माना जाएगा

जैसा कि हमारे देश के प्रधानमंत्री , बिना किस मतलब के झूट बोले जाते है और साथ के साथ इस झूट को वो एक ख़ास राजनैतिक मकसद के साथ लोगो को गुमराह करने के लिए बोलते है  जो किसी भी व्यक्ति की शाख को गिरा देता है , उसके व्यक्तित्व को कलंकित कर देता है क्योकि कम से कम एक प्रधानमंत्री को ऐसा झूट नहीं बोलना चाहिए

सदीओ से मनोविज्ञान की इस बात में रूचि रही है कि लोग झूट क्यों बोलते है आखिर इसका क्या मनोवैज्ञानिक ,  आर्थिक , समाजिक , कारण हो सकते है , इस बात के लिए ऐसे बहुत सारे मनोवैज्ञानिक रिसर्च हुई है जिनसे यह पता चला है कि आखिर वो क्या वजह है जिसकी वजह से लोग झूट बोलते है

तो आइये जानते है की झूट बोलने वालो का मनोवैज्ञानिक प्रोफाइल क्या होता है

आम तौर पर जिन बच्चो या लोग जो अपने आपको असुरक्षित और कम आत्मसम्मान के होते है वो अक्सर अपने बारे में या अपने जीवन के बारे में झूट बोलते है , अपने आपको अमीर बताना या गरीब बताना , अपने जीवन को संघर्षपूर्ण बता कर अपने वर्तमान की उपलब्धियो को गिनाता है यानी अपने जीवन के बारे में झूटी झूटी कहानियाँ सुनाता है

 ऐसा व्यक्ति झूठ का पता चलने पर   शर्मिंदा होने की बजाय     वह क्रोधित होता है, दुसरे लोगो पर अपने आपको शिकार बनाने का आरोप लागता है रोने लग जाता है ताकि लोगो का ध्यान झूट से हट जाए   .

झूट बोलने की बिमारी को  एक मनोवैज्ञानिक विकार कहा जाता है जिसे mitomanía  कहा जाता है साथ ही इसे पेथोलॉजिकल लायर भी कहते है

पेथोलॉजिकल लायर : झूठ बोलनेवाले व्यक्ति को कैसे पहचानें

  1. -झूठ बोलनेवाला व्यर्थ की बातों को बढ़ा-चढ़ाकर बताता है।

-2. इस तरह की सोच वाले हमेशा अपनेआपको दूसरों से बेहतर साबित करने में लगे  रहते हैं। अगर आप इस व्यक्ति को सही- गलत सिखाना चाहेंगेतो वह उलट कर आपको गलत साबित करनेकी कोशिश करेगा। प्यार और अच्छे मकसद से समझाने पर  भी आपकी बात नहीं मानेगा। वह बहस करने लगेगा। वह अपने आप में किसी भी तरह की कमी से इनकार कर देता है।

-इस तरह का व्यक्ति अपनेआसपास एक सच्चई का घेरा बनाकर रखता है लेकिन, वह सच का महत्व नहीं समझता। अगर

  1. आप उसे झूठा बोलोगे तो वह या तो कन्नी काट लेगा या फिर सामने वाले व्यक्ति को बुरा-भला कहकर खुद को सच्च साबित करने में लगा रहेगा। वह जब अपनी बात साबित नहीं कर पाता तो ऐसे दर्शाता है जैसे कुछ भी नहीं हुआ हैऔर सब मिलकर बात का बतंगड़ बना रहेहैं।

-4. इस तरह के व्यक्ति क्योंकि सच मेंविश्वास नहीं करते इसलिए वफादार भी नहीं होते। वह व्यक्ति हर समय अपने आपको असुरक्षित महसूस करते हैं तथा किसी भी परिस्थिति में अपने जैसे व्यक्ति ढूंढ़ते हैं।

  1. अगर ऐसेव्यक्ति का झूठ पकड़ा जाता हैतो वह सहानुभूति अजिर्त करनेके लिए अपने आपको बीमार दिखाते हैं तथा अपने आपको किसी भयंकर बीमारी से ग्रस्त बताकर सहानुभूति लेना चाहते हैं। यह उस स्थिति से बचनेका हथियार होता है।

-यह व्यक्ति हमेशा अपनी बातों पर टिककर नहीं रह पाता। पल-पल में वाक्य बदलता है, पर ऐसे लोगों की मैमोरी जबरदस्त होती है। वे एक साथ कई झूठ बोलते हैंऔर यह याद भी रखते हैं कि कहां क्या बोला था। लेकिन काफी समय के बाद जब वही झूट दुबारा बोलते है तो तथ्य बदल जाते है

फिर लोग इतनी बार झूठ क्यों बोलते हैं?

जर्नल नेचर न्यूरोसाइंस में प्रकाशित अध्ययन से यह साबित होता है कि लोग सिर्फ एक बार ही झूठ नहीं बोलते हैं। बल्कि ये उसकी बार बार की आदत होती है

हमारे दिमाग का हिस्सा एमिग्डाला मस्तिष्क जो हमारी  भावनाओं, को व्यवहार और को कण्ट्रोल करने में काफी अहम रोल निभाता है

जब लोग पहली बार झूठ बोलते हैं, तो एमिग्डाला भावनात्मक प्रतिक्रिया के कारण आपके द्वारा किए जा रहे व्यवहार को अस्वीकार कर देगा। यह भावनात्मक प्रतिक्रिया एक डर हो सकती है जो झूठ बोलते समय उत्पन्न होती है। लेकिन जब कुछ बुरा नहीं होता है – भले ही उसे झूठ कहा गया हो – अमिगडाला व्यवहार को स्वीकार करेगा और फिर भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं देगा, जो वास्तव में आपको तीसरी बार झूठ बोलने से रोक सकता है।

दरअसल, आपका मस्तिष्क झूठ बोलते समय लड़ता है, लेकिन फिर अनुकूलन करना शुरू कर देता है

आप कह सकते हैं कि अगर हर कोई आपके साथ झूठ बोलेगा। झूठ वास्तव में मनुष्यों के लिए बहुत स्वाभाविक है। लेकिन दुर्भाग्य से, आपके पास पहली क्षमता नहीं है। हां, जब आप झूठ बोलते हैं, तो आपके विभिन्न शारीरिक कार्यों को बदलना होगा, जैसे कि तेज़ दिल की धड़कन, अधिक पसीना, यहां तक ​​कि कांपना।

इसका मतलब है कि आपका मस्तिष्क आपके द्वारा पहले कहे गए झूठ का जवाब देता है। आप खोजे जाने से डरते हैं और अंततः आपके लिए बुरा बन जाते हैं। यह आपके मस्तिष्क को वापस लड़ता है और अंत में शरीर के कार्यों में विभिन्न परिवर्तन होते हैं। लेकिन अगर आप इसे कई बार करते हैं – विशेष रूप से जब पहला झूठ काम करता है – तो मस्तिष्क वास्तव में आपके द्वारा किए गए झूठ को स्वीकार करता है।

मस्तिष्क सोचता है कि अगर आप एक बार झूठ बोलते हैं तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, इसलिए मस्तिष्क अनुकूल होगा और समय के साथ जब आप झूठ बोलते हैं तो शरीर के कार्यों में कोई बदलाव नहीं होगा। इसके अलावा, यह इंगित करता है कि झूठ के प्रति आपकी भावनात्मक प्रतिक्रिया कम हो रही है, इसलिए एक अंत है, आप झूठ को बताना जारी रखेंगे।

बच्चे झूठ क्यों बोलते हैं- What are the reasons for lying in children?

मेडिकल साइंस की मानें तो, जो बच्चे ज्यादा झूठ बोलते हैं अक्सर वे कुछ मेंटल डिसऑर्डर (Mental disorders) के कारण हो सकता है। दरअसल, बच्चों में कुछ मानसिक डिसऑर्डर होने पर वे ज्यादा झूठ बोलने लगते हैं। जैसे कि

1. अटेंशन डेफेसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD disorder)

एडीएचडी (Attention deficit hyperactivity disorder) दिमाग की वो बीमारी है जो कि आज तक तेजी से बच्चों में बढ़ रही हैय़ इसमें बच्चा छोटी-छोटी बातों पर भी झूठ बोलने लगता है और ये आदत उनमें बढ़ती ही जाती है। दरअसल, ऐसे बच्चों में कुछ मानसिक क्रियाएं होती हैं जो उन्हें भविष्य के परिणामों को लेकर हमेशा डराए रखता है। इसलिए ऐसे बच्चे सच बोलने की हिम्मत नहीं कर पाते और तुरंत झूट बोल देते हैं।

2. सोशल एंग्जायटी डिसऑर्डर (Social anxiety disorder)

सोशल एंग्जायटी डिसऑर्डर वाले बच्चे बाहरी लोगों से और वातावरण से बचने की कोशिश करते हैं। ऐसे बच्चे रोजमर्रा की चीजों को करने में घबराते हैं और सामाजिक चिंता से डरे रहते हैं जैसे कोई क्या सोचेगा, कोई क्या कहेगा और कहीं ये ना हो, वो ना हो। ऐसी सामाजिक चिंता विकार आमतौर पर शुरुआती से मध्य-किशोरावस्था में शुरू होता है, हालांकि यह कभी-कभी छोटे बच्चों या वयस्कों में शुरू हो सकता है। ऐसे में बच्चे इन कारणों से झूठ बोलते हैं। जैसे कि

-उन स्थितियों का डर कर झूठ बोलते हैं जिनमें आपको नकारात्मक रूप से आंका जा सकता है

-खुद को शर्मिंदा करने या अपमानित करने की चिंता से झूठ बोलते हैं

-अजनबियों के साथ बातचीत करने या बात करने पर झूठ बोलते है

3. कंडक्ट डिसऑर्डर (Conduct disorder)

कंडक्ट डिसॉर्डर(Conduct disorder) एक प्रकार की व्यावहारिक और इमोशन से जुड़ी बीमारी है। ये बीमारी जिन बच्चों में होती है उनमें ये बचपन से होती है। इस डिसऑर्डर के कार बच्चे बचपन से बेहद आक्रामक, गुस्सैल और झूठ बोलने वाले बन जाते हैं। इतना ही नहीं ऐसे बच्चे झूठ बालने के अलावा, चोरी करने और धोखा देना सीख जाते हैं। इसके अलावा कई सामाजिक वजहें भी होती हैं जिसकी वजह से ऐसे बच्चे झूठ बोलते हैं। ऐसे में कई बार बच्चे इन कारणों से भी झूठ बोलते हैं। जैसे कि

-गलती करने के बाद इसे छिपाने के लिए

-प्यार छिन जाने के डर से

-सजा के डर से

-काम से बचने के लिए

-सच बोलने के परिणाम से

कुल मिला आकर हम कह सकते है कि झूट बोलना एक मानसिक बिमारी है जिसे परामर्श  से ठीक किया जा सकता है , लेकिन  अगर उसे ठीक न करे तो काफी उम्र हो जाने के बाद यह एक मानसिक बिमारी पैरोनोया में भी तब्दील हो जाती  है जिसमे  व्यक्ति अपने आस पास की सभी चीजो को शक की नज़रो से देखता है उसे लगता है कि लोग उस पर शक करते है , उसके खिलाफ षड्यंत्र रच रहे है , आदि आदि

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