जानिये चौंका देने वाली वो वैज्ञानिक बाते जो साबित करती है रामायण और महाभारत काल्पनिक ग्रन्थ है ?
बिहार के शिक्षा मंत्री ने एक बार फिर इस बात की बहस छेड़ दी है कि क्या सच में हमारे धार्मिक ग्रन्थ भेदभाव सिखाते है , जातिवाद फैलाते है ? क्योकि एक बात तो बिलकुल सत्य है कि भगवान खुद इस बात का उपदेश नहीं दे सकता की समाज में किसी को छोटा ,बड़ा समझा जाए , किसी को नीच समझा जाए और कोई जाति बहुत श्रेष्ट है और कोई जाति नीच है , और यह भी स्पस्ष्ट है और जग जाहिर है कि ये ग्रन्थ इंसानों ने लिखे है जिसका मतलब साफ़ साफ़ है तत्कालीन समाज में भेदभव था तो कुछ लोगो ने इनको जानबूझ कर प्रसारित और प्रचारित किया .
खैर यह बात भी है जिनके बारे में यानी जिन देवी देवताओं या चरित्रों के बारे में ये ग्रन्थ लिखे गए क्या ये सच में भारत के इतिहास में थे ?
चलिए विज्ञान और वैज्ञानिक पद्धति को समझते हुए हम ये समझते है कि इन चरित्रों का वजूद था या नहीं
विज्ञान और विज्ञानिक पद्धति वह प्रक्रिया है जिससे यह साबित हो जाता है की मानव विकास में , तकनीकी में ब्रह्माण्ड में होने वाली क्रियाये स्वाभाविक नहीं बल्कि एक दुसरे के कार्य – कारण और एक वयास्थित प्रक्रिया की वजह से हो रही है , धुल आंधी , हवा का चलना एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है न की कोई इन्हें पंखा ले कर चला रहा है बारिस एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है न कोई कोई उपर से पानी बरसा रहा है .
और यह वैज्ञानिक इसलिए है क्योकि इस जांच हो सकती है और फिर इस जांच की भी जांच हो सकती है और हर जांच में रिजल्ट सेम ही आयगा , यानी वैज्ञानिक प्रक्रिया मे कुछ डाटा लिया जाएगा , उनको व्यवस्थित किया जाएगा उसी जांच होगी , उसको परखा जाएगा , रिजल्ट आने पर फिर से जांच होगी , और भारत में ही नहीं दुनिया के हर हिस्से में उसी प्रक्रिया की जांच होगी और सेम रिजल्ट आने पर वह विज्ञानिक प्रक्रिया होगी
अब सवाल आता है भारत में एक वर्ग द्वारा फैलाई जा रही भ्रान्तियो के बारे में यानी रामायण और महाभारत कभी इस देश में हुए या नहीं या ये सिर्फ कोरी कल्पना है
इतिहास ने भी विज्ञान के नियमो को अपनाया है और इतिहास का लेखन वास्तुनिष्ट सामग्री पर लेखन के लिए ही जोर डाला गया है , और जब हम वास्तुनिष्ट सबूतों या सामग्री की बात करते है तो उस पर रामायण और महाभारत खरी नहीं उतरती , आइये देखे कैसे
कहानी रामयाण और महाभारत एक एपिक की तरह लिखे गए ज्सिका मकसद सिर्फ और सिर्फ एक नैतिक या राजनैतिक सोच तैयार करना थ
1.कोई भी वास्तु /शिल्प सबूत मौजूद नहीं : हर राजा , महाराजा , अपने लिए महल बनवाता है , भवन बनवाता है , बाग़ बगीचे बनवाता है और इन इमारतो को वह कुछ ख़ास तरीके से बनवाता है यानी हम अगर सम्राट अशोक का इतिहास देखे तो हमें सभी प्रकार के सबूत मिलते है वास्तु भी शिल्प भी लेकिन रामायण और महाभारत के इन चरित्रों का का कुछ भी नहीं मिलता ? यानी रामायण , महाभारत काल के महल शहर इमारते , घर कुछ भी नहीं मिला है जबकि करोड़ो वर्ष पहले की भी इमारते मिल गई है
2 . हर शासक , राजा , महाराजा अपने शासन काल में अपने सिक्के यानी व्यापार के लिए सिक्के ,मुद्रा चलवाता है जिसके जरिये देश राज्य के अंदर व्यापार और लेन देन का कार्य चलता है , और जो निश्चित तोर पर उसकी सीमा और विदेश सीमा यानी उसके शासन के बाहर भी खुदाई में मिलते है और हर शासन काल के सिक्के सबूत मिले है लेकिन रामायण , महाभारत काल का ऐसा कुछ भी नहीं मिलता
३. विदेशो से सम्बन्ध एक राजा के लिए बड़े जरूरी होते है , युद्ध भी होते है संधिया भी होती है लेकिन इन दोनों काल के यानी रामायण और महाभारत काल का ऐसा कुछ भी सबूत नहीं मिलता सिर्फ स्थानों के नाम मिल जाने से कुछ नहीं होता क्योकि लेखक अपनी कहानी लिखते वक्त चरित्रों के स्थानों के नाम भी लिखता है जो निश्चित रूप से कहानी में जिन्दा रहते है , लेकिन इसको आधार नहीं माना जा सकता
४. विदेशो से व्यापार , यात्रिओ के लिए धर्मशाला , सुरक्षा वाव्य्स्था बाग़ बगीचे , सराय ये सब भी रहा बनवाता है लेकिन इन दोनों काल का कुछ भी नहीं मिलता जैसे अशोक ने बनवाये विदेशो तक बौध धर्म के प्रचार के लिए अपने पुत्र महेंदर को भेजा उसने उद्यान,बगीचे , धर्मशालाए , धर्म शिला लेख बनवाये लेकिन राम , कौरव , पांडव का बनाया हुआ कुछ भी नहीं मिला है
५. संस्कृति – कला ,किसी भी इतिहास में या शासन में अपनी कला और संस्कृति जन्म लेती है , लेखक ,कवी आदि जन्म लेते है लेकिन न तो किताबो के स्तर पर कुछ भी नहीं मिलता , शिल्प , पेंटिंग , नक्काशी , वाल राइटिंग, वाल कार्विंग , भित्ति चित्र आदि इस काल का कुछ भी नहीं मिलता जबकि बौध काल का समूचा इतिहास है और उसे सांस्कृतिक चिन्ह देश विदेशो में मिलते है
६. कालखंड . सबसे बड़ी बात होती है कि कोई भी घटना किसी कालखंड में ही होती है यानी उसका अपना एक समय होता है लेकिन इन ग्रंथो का कोई भी कालखंड नहीं है कहने को तो हर धार्मिक संघठन अपनी अपनी दलील देता रहता है , कोई कुछ काल बताता है तो कोई कुछ
इसके अलावा जो ग्रन्थ या किताबे मिली है उनकी भी कार्बन डेटिंग से कोई सबूत नहीं मिलता की ये ग्रन्थ बहुत पुराने है
सो विज्ञान धारणा या कल्पना से शुरू हो सकता है लेकिन हमने उड़ने की कल्पना की लेकिन उड़े कैसे ? इसलिए विज्ञानिक कोई भी तत्थ्य आज तक नहीं है और न ही आयगा
इसके अलावा आप देखेंगे की बाल्मीकि यानी अग्नि शर्मा की रामायण सबसे पुरानी मानी जाती है लेकिन आज तक उसकी कार्बन डेटिंग क्यों नहीं करवाई जाती ?यह भी नहीं पता की असली किताब है भी या नहीं , इसके अलावा ऐसा कहा जाता है की देश में तीन सौ से अधिक किस्म की रामायण है
सबसे बड़ी बात भारत नहीं बल्कि एशिया में जहा भी खुदाई होती है वहा सिर्फ बुध के निशाँ जरूर मिलते है,रामायण या महाभारत का कोई सबूत नहीं
लेकिन बावजूद इसके आप इन किताबो का नैतिक उपदेश के लिए इस्तेमाल कर सकते है इसमें से जो सही है और शास्वत है उसका इस्तेमाल आप अपनी संस्कृति में कर सकते है लेकिन इन किताबो को ही अंतिम सच मान कर उसके आधार पर देश और समाज में दंगा नफरत फैलाना खुद अपने आप में इन किताबो का अपमान होगा